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रींगस में है विश्व विख्यात भैरूं बाबा का मंदिर ..

रींगस में है विश्व विख्यात भैरूं बाबा का मंदिर ..

रींगस के भैरु बाबा का इतिहास 

कालाष्टमी के दिन रींगस के भैरु बाबा की आकाशवाणी हुई और यहीं रुक गई मूर्ति

600 वर्ष से भी पुराना है रींगस के भैरू बाबा का इतिहास, गुर्जर समाज के लोग गायें चराते मूर्ति लेकर रींगस आए तो यहां से नहीं हिली मूर्ति

रींगस :- ( बी एल सरोज ) देश भर में प्रसिद्ध रींगस के भैरू बाबा की मूर्ति की स्थापना करीब 600 वर्ष पहले कालाष्टमी के दिन आकाशवाणी के साथ हुई थी। भैरु बाबा मंदिर कमेटी के कोषाध्यक्ष फूलचंद गुर्जर ने बताया कि भैरु बाबा मंदिर के बारे में उनके पूर्वजों ने बताया कि ब्रह्मा जी के पांचवें मुख से शिव जी की आलोचना के बाद भगवान शिवजी के पांचवे रुद्र अवतार के रूप में भैरु बाबा के रूप में अवतरित हुए और अपने नाखून से ब्रह्माजी का पांचवा मुख धड़ से अलग कर दिया। इसके बाद भैरु बाबा को ब्रह्महत्या का अभिशाप लग गया। ब्रह्महत्या के अभिशाप से मुक्ति पाने के लिए शिवजी के आदेश पर भैरु बाबा ने तीनों लोकों की यात्रा की। बताया जाता है कि वह यात्रा पृथ्वी लोक पर रींगस से शुरू की गई थी।
पुजारी परिवार के कथनानुसार भैरु बाबा मंदिर के पुजारी गुर्जर जाति से होने के कारण गायें चराते थे तथा मंडोर जोधपुर में निवास करते थे। गायें चराते समय एक छोटे पत्थर की गोल मूर्ति भैरु बाबा के रूप में झोली में रख कर पूजा अर्चना करते थे। अधिकतर गुर्जर गायें चराते समय तालाबों के किनारे ही रुकते थे। वें जहां भी रुकते, वहीं झोली से भैरु बाबा की मूर्ति निकाल कर शाम को पूजा अर्चना के साथ भोग लगा कर सो जाते थे। सुबह उठकर नित्य कर्म के साथ पूजा अर्चना कर छोटे पत्थर की भैरु बाबा की मूर्ति को वापस झोले में रखकर गायों के साथ निकल जाते थे। इसी क्रम में मंडोर जोधपुर से चलते हुए दूदू के पास स्थित पालू गांव, जयपुर के पास स्थित बेनाड़ होते हुए रींगस में आकर तालाब किनारे रात्रि विश्राम किया। झोली से पत्थर की मूर्ति निकाल कर पूजा अर्चना के बाद खाना खाकर सो गए। सुबह रवाना होने के लिए मूर्ति को वापस झोले में डालने के लिए उठाने लगे तो वह उठी नहीं। उठना तो दूर की बात छोटे से पत्थर की मूर्ति हिल भी नहीं पा रही थी। मूर्ति को उठाने के लिए गुर्जर समाज के लोगों ने काफी प्रयास किए और नहीं उठने पर निराश होकर बैठ गए। इसके बाद अचानक आकाशवाणी हुई और स्वयं भैरू बाबा ने बताया कि मैंने ब्रह्मा हत्या का प्रायश्चित करने के लिए पृथ्वी लोक की पदयात्रा इसी स्थान से शुरू की थी, आज वही स्थान आ गया है और मैं यही निवास करना चाहता हूं। इसके बाद पुजारी परिवार के लोग यहीं रुक गए। भैरू बाबा की मूर्ति की स्थापना कर पूजा अर्चना करने लगे। दिन में तालाब के आसपास गायों को चरा कर जीवन यापन करने लगे।

शमशान की भस्म से विशाल रूप धारण किया मूर्ति ने

भैरु बाबा के पुजारी प्रतिहार गोत्र के गुर्जर समाज के लोग हैं। उनके अनुसार मार्गशीर्ष की कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन भैरु बाबा शिव जी के पांचवे रूद्र अवतार के रूप में अवतरित हुए थे। मंदिर जीर्णोद्धार से पहले चारों तरफ शमशान थे तथा चबूतरे पर बाबा की मूर्ति विराजमान थी। शमशानों से हवा के साथ उठने वाली भस्मी को धारण करके भैरु बाबा की मूर्ति विशाल होती गई। लेकिन वर्तमान में चारों तरफ से मंदिर ढका होने के कारण मूर्ति यथास्थिति रूप में है।

मंदिर के सामने 1669 ईस्वी में बनी थी छतरी

भैंरु बाबा मंदिर के सामने सती माता की छतरी है। इसका निर्माण 1669 ईस्वी में हुआ था इसका पत्थर भी लगा हुआ था लेकिन 2013 में हुए मंदिर जीर्णोद्धार के दौरान छतरी का जीर्णोद्धार भी करवाया गया था इससे छतरी में अंकित शिलापट्टीका निर्माण कार्य के दौरान अंदर दब गई। भैरु बाबा का मंदिर छतरी से भी 200 वर्ष पहले होने के साक्ष्य मंदिर पुजारी परिवार बता रहे हैं। क्योंकि जिस सती माता की यह छतरी बनी है वो अपने विवाह के बाद अपने पति के साथ भैरुजी के गठजोड़े की जात लगाने आई थी।

मंदिर के पीछे बनी पवित्र जोहड़ी का है विशेष महत्व 

भैरुजी मंदिर पुजारी शंकर लाल गुर्जर ने बताया कि भैरु बाबा मंदिर के पीछे स्थित पवित्र जोहड़ी में स्नान करने से बांझ स्त्रियों को संतान प्राप्ति, चर्म रोगों से मुक्ति सहित असाध्य बिमारियों से छूटकारा मिलता है। अब खंडेला विधायक सुभाष मील ने 2 करोड़ 54 लाख की लागत से भैरुजी जोहड़ी का सौन्दर्य करण करवा रहे हैं जिसका कार्य निर्माणाधीन है जो आगामी दिनों में एक पर्यटक स्थल के रुप में विकसित होगी।

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