रींगस वाले भैंरों बाबा के जन्मोत्सव की धूम
हजारों भक्तों ने कहा हैप्पी बर्थडे बाबा
भैरू बाबा के जन्मदिन पर केक काटा डीजे की धूनो पर थिरकते रहे देर रात तक युवा
पहली बार हुई पवित्र जोहड़ी के घाटों पर महाआरती
रींगस न्यूज :- जन-जन की आस्था के प्रतीक लोक देवता भैरू बाबा का जन्मोत्सव बुधवार साहब धूमधाम से मनाया गया , श्री भेरुजी मंदिर कमेटी के तत्वाधान में दीपक जलाकर कस्बा वासियों ने मंदिर परिसर को रोशनी से जगमगा दिया उसके बाद मां गंगा की तर्ज पर बाबा की पवित्र जोहड़ी पर बने घाटों पर महा आरती का आयोजन किया गया जिसमें सैकड़ो कस्बा वाशियो ने हिस्सा लिया वहीं बाहर से आए भक्तजन भी इस महा आरती में शामिल हुए। गौरतलब है कि भैरू बाबा का जन्मदिन कालाष्टमी तिथि को मनाया जाता है।
रींगस वाले भैरु बाबा का इतिहास
भैरव जयंती विशेष : रींगस में हुई भैरू बाबा की आकाशवाणी, यहीं थमी मूर्ति — 600 साल पुराना इतिहास आज भी देता है आस्था का संदेश
रींगस न्यूज :- (बी एल सरोज)। देशभर में प्रसिद्ध रींगस स्थित भैरू बाबा मंदिर का इतिहास करीब 600 वर्ष पुराना है। मान्यता है कि कालाष्टमी के दिन यहां भैरू बाबा की आकाशवाणी हुई थी, जब गायें चराते हुए आए गुर्जर समाज के लोगों की झोली में रखी पत्थर की मूर्ति यहीं आकर रुक गई और फिर कभी नहीं हिली। यही मूर्ति आज लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है।
आकाशवाणी के साथ हुई भैरू बाबा की स्थापना
मंदिर कमेटी के पदाधिकारियों के अनुसार, भैरू बाबा का अवतार भगवान शिव के पांचवें रुद्र रूप में हुआ था। कथनानुसार, ब्रह्मा जी के पांचवें मुख से शिवजी की आलोचना करने पर भगवान शिव के पांचवें रुद्र अवतार के रुप में भैरव उत्पन्न हुए और उन्होंने ब्रह्मा जी का पांचवा मुख अपने नाखून से काट कर धड़ से अलग कर दिया। इस कारण उन्हें ब्रह्महत्या का अभिशाप मिला। मुक्ति के लिए उन्होंने तीनों लोकों की यात्रा की, जिसका आरंभ पृथ्वी लोक पर रींगस से हुआ था।
मंडोर से रींगस तक की यात्रा
बताया जाता है कि गुर्जर समाज के लोग मंडोर (जोधपुर) में निवास करते थे और गायें चराते समय एक पत्थर की मूर्ति को भैरू बाबा स्वरूप पूजा करते थे। यात्रा करते हुए वे दूदू के पालू गांव, जयपुर के बेनाड़ होते हुए रींगस पहुंचे। यहां तालाब किनारे रात को विश्राम किया और सुबह जब मूर्ति उठाने लगे तो वह हिली तक नहीं।
तभी आकाशवाणी हुई — “मैंने ब्रह्महत्या के प्रायश्चित हेतु पृथ्वी लोक की यात्रा इसी स्थान से प्रारंभ की थी, अब मैं यहीं निवास करूंगा।” इसके बाद वहीं मूर्ति की स्थापना हुई और आज यह स्थान भैरू बाबा मंदिर रींगस के नाम से जगप्रसिद्ध है।
शमशान की भस्म से मूर्ति ने लिया विशाल रूप
मंदिर पुजारी परिवार के अनुसार, मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी के दिन ही भैरव बाबा का जन्म हुआ था। मंदिर के चारों ओर शमशान है। हवा में उड़ती भस्म मूर्ति पर जमने से इसका आकार समय के साथ बड़ा होता गया। आज मंदिर चारदीवारी से घिरा है, लेकिन बाबा की मूर्ति का दिव्य तेज अब भी यथावत है।
1669 ईस्वी में बनी सती माता की छतरी
मंदिर के सामने सती माता की ऐतिहासिक छतरी है, जिसका निर्माण 1669 ईस्वी में हुआ था। मंदिर का निर्माण उससे करीब 200 वर्ष पहले का माना जाता है। 2013 में हुए जीर्णोद्धार के दौरान छतरी की मरम्मत की गई, जिससे पुरानी शिलापट्टिका भीतर दब गई।
भैरवाष्टमी पर हुए अनेक धार्मिक आयोजन
भैरव अष्टमी (12 नवंबर) बुधवार को दिनभर धार्मिक कार्यक्रमों की धूम रही अल सुबह प्रातः 31 किलो दूध से अभिषेक और कोलकाता के फूलों से विशेष सजावट की गई। संध्या के समय आतिशबाज़ी के बीच 101 किलो मावे का केक काटकर भैरू बाबा का जन्मदिन मनाया गया। इससे पहले 7100 दीपक जलाकर भव्य दीपोत्सव मनाया गया। दिनभर भैरव नामावली पाठ, सत्संग, हवन, कीर्तन और रात्रि जागरण जैसे आयोजन हुए।
भैरवाष्टमी पर नवाचार — पहली बार हुई जोहड़ी पर महाआरती
इस वर्ष भैरवाष्टमी पर विशेष नवाचार किया गया है। जिसमें गंगा मैया की तर्ज पर भैरू बाबा की पवित्र जोहड़ी की महाआरती की गई। हजारों श्रद्धालु इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बने। क्योंकि भैरु बाबा के भक्त जोहड़ी को गंगा जी का अंश मानते हैं जिसमें स्नान मात्र से ही सभी प्रकार के दुःख-दर्द, पीड़ा दूर हो जाती है।
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